हिंदू सरदारों को पराजित करने के बाद इस्लामिक राज्य को विस्तार देने की व्यवस्था के तहत इसमें अनेक राजाओं को हराकर अपने अधीन किया गया था। अनेक हिंदू राजाओं को मार डाला गया। उनके धन को हड़प कर सेना व केंद्रीय सत्ता को ताकतवर बनाया गया।
इल्तुतमिश ने अपने जीवन काल में हिंदुओं को मुसलमान बनाने का अभियान जारी नहीं किया।केवल हिंदू जनता में शासकों को भय दिखाकर अपने साम्राज्य को सुरक्षित किया। जब कभी मुस्लिम शासकों का दौर आया तब मुस्लिम सरदार सत्ता के लिए परस्पर खून खराबा या मार काट करते रहते थे।
उनका ध्यान न तो धर्म फैलाने की तरफ था और ना ही हिंदुओं को मुसलमान बनाना उनकी इच्छा थी। इसलिए हिंदू संस्कृति काफी हद तक बची रही अर्थात उनका अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ।
मुस्लिम शासकों को मुसलमान से खतरा
- सभी मुसलमान आक्रमणकारी मध्य एशिया से उत्तर पश्चिमी दरों से होते हुए भारत में आए।
- यह लोग बर्बर और निर्दयी थे।
- इनका सामना भारत में राज कर रहे मुस्लिम सुल्तानों को करना पड़ा।
- मुस्लिम सुल्तानों को जितना भय तुर्क योद्धाओं से रहा उतना भय हिंदुओं से नहीं रहा। क्योंकि यहां का समाज जातियों में विभाजित था।
बलबन तथा खिलजी वंश
- बलबन ने हिंदू सरदारों की हत्या की तथा उनके मंदिरों को तोड़ा, लेकिन इस्लामीकरण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
- इसका कारण था दरबार में षड़यंत्र व मंगोल आक्रमण का भय।
- वह चंद राजपूतों को दबाकर भय मुक्त हो गया। सल्तनत के सुल्तानों को आए दिन मंगोलो का सामना करना पड़ा।
- मंगोल एक वीर जाती थी इसलिए बलबन ने अपने साम्राज्य को मंगोल आक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए हिंदू जनता से छेड़खानी नहीं की।
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी बहुत ही उदार सुल्तान था। इसका खून बहाने में विश्वास नहीं था।
- इसने हिंदू-मुसलमानों तथा तुर्क-गैर तुर्कों में भाईचारा बढ़ाने की कोशिश की।
- अलाउद्दीन खिलजी के उत्तरी अभियान केवल राज्य सत्ता स्थापित करने के लिए थे।
- उसको विश्व विजय की आकांक्षा थी। वह मुस्लिम धर्म के प्रभाव में नहीं था। उसने तलवार की नोक पर हिंदू सरदारों को भय दिखाकर दिल्ली पर राज किया।
- हारे हुए हिंदू सरदारों का धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश नहीं की क्योंकि धर्म परिवर्तन का दबाव सल्तनत के लिए खतरा था। उसे अपने राज्य की सुरक्षा के लिए धन चाहिए था धर्म नहीं।
- उसने धर्म के नाम पर मुस्लिमों को बांधकर रखा जो उसकी सत्ता का आधार थे। वह बहुत ही समझदार था क्योंकि वह जानता था कि बहुसंख्यक हिंदुओं को मुसलमान बनाना असंभव होगा।
- काफी संख्या में मुसलमान गांव में जाकर बस गए थे जिससे दोनों धर्मों के लोगों में मानवता के बीज अंकुरित हुए तथा वे एक-दूसरे के नजदीक आए। इस प्रकार इस व्यवस्था ने भी मुस्लिम शासकों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने धर्म को राजनीति से अलग कर दिया था। हालांकि वह सुन्नी मुसलमान था।
- अनपढ़ होते हुए भी बड़ा चतुर था, उसने भी हिंदू मंदिर तोड़े, कत्लेआम किया, हिंदुओं को नीचा दिखाया, उनको कंगाल कर दिया लेकिन इस्लामीकरण की प्रक्रिया से दूर रहा।
- अगर वह प्रत्येक जाति को मुसलमान बनाने की कोशिश करता तो हो सकता था कि सभी जातियां एक होकर हिंदू सरदारों के साथ जुड़ जाती और मुस्लिम राज के लिए खतरा बन जाती।
- अलाउद्दीन के साथ किसी भी मुसलमान शासक ने इस नीति को नहीं अपनाया और हिंदू राज्य सुरक्षित रहे तथा यही कारण था कि हिंदू लोग हिंदू ही बने रहे।
ज्ञासुद्दीन तुगलक
- ज्ञासुद्दीन तुगलक एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं के प्रति कठोर नीति अपनाई।
- उसने हिंदुओं को अतिरिक्त धन संचय करने पर रोक लगा दी ताकि वह महत्वाकांक्षी ना बन बैठे।
- लेकिन उसने हिंदू सरदारों व अन्य हिंदू लोगों को तंग नहीं किया। उसने अपने आक्रमण के समय किसी भी हिंदू मंदिर को नहीं तोड़ा तथा न ही किसी हिंदू देवता को अपमानित किया।
- उसने आक्रमण उसके आक्रमणों का उद्देश है इस्लाम को फैलाना नहीं था। वह धन प्राप्त कर अपने राज्य को दूर करना चाहता था।
- ऐसा कहा जाता है कि उसके शासनकाल में शेर तथा बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे। ज्ञासुद्दीन ने कभी भी हिंदुओं के संस्कार व संस्कृति को मिटाने की कोशिश नहीं की इसके पीछे कारण था मंगोलो का भय।
- मंगोल एक लड़ाकू जाती थी और वह किसी भी समय दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए तैयार रहती थी। मंगोलो से अपनी रक्षा के लिए उसने हिंदुओं पर दबाव डालकर धन प्राप्त किया। लेकिन उनकी संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं की।
- अगर वह हिंदुओं को मुसलमान बनाने का अभियान चलाता तो इस धर्म के चक्कर में वह अपना राज्य खो बैठता।
मोहम्मद बिन तुगलक
- मोहम्मद बिन तुगलक मध्यकालीन भारतीय मुस्लिम शासकों में सबसे विद्वान व्यक्ति था।
- वह भी अलाउद्दीन खिलजी की तरह धर्म के प्रभाव से दूर था। यही कारण था कि राज दरबार के मौलाना उससे नाराज थे।
- उसने धर्म निरपेक्षता का पालन करते हुए हिंदुओं के प्रसिद्ध त्योहार होली के उत्सव में भाग लिया। उसने कई हिंदू सरदारों को अपने राज्य में उच्च पदों पर नियुक्त किया।
- शेख अलाउद्दीन जो कि मोहम्मद बिन तुगलक का गुरु था, उसने भी उसे भाईचारा का पाठ पढ़ाया।
- उसे पीर फकीरों की संगति पसंद थी जिनसे उनको मानवता का पाठ पढ़ने को मिला।
मुस्लिम शासकों के दक्षिणी अभियान
अलाउद्दीन खिलजी ने 1307 में देवनगरी पर आक्रमण किया और वहां के हिंदू राजा रामचंद्र को हराकर उसे धन प्राप्त किया और उसका राज्य उसे वापस कर दिया। यदि वे धर्म के नाम पर युद्ध करता है तो वह राजा रामचंद्र को जरूर मुसलमान बनाता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
उसने देवगिरी पर विजय प्राप्त करने के बाद भी हिंदू जनता को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया। मुस्लिम शासकों ने दक्षिण राज्य पर विजय प्राप्त की लेकिन उनको अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया, केवल धन लेकर छोड़ दिया।
दक्षिण राजाओं ने मुस्लिम शासकों की अधीनता स्वीकार करके वार्षिक कर देने का वचन दिया। उन हिंदू सरदारों की तरफ मुस्लिम शासकों ने मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपने साथ व्यवहार करने से उनके दिलों को जीत लिया। इस प्रकार हिंदू सरदारों का धर्म, संस्कृति दोनों सुरक्षित रहे।
मुस्लिम शासक समझदार थे, उनको पता था कि यातायात के साधन के अभाव में वे न तो दक्षिण राज्य पर शासन कर सकते थे और ना ही धर्म परिवर्तन करा सकते थे। अगर किसी हिंदू सरदार के साथ ऐसा हो भी जाता तो आक्रमणकारी के लौटने के बाद तुरंत वह हिंदू धर्म अपना लेता।
इसका उदाहरण है संगम वंश के संस्थापक हरिहर तथा बुक्का जिन्होंने दोबारा हिंदू धर्म अपनाकर दक्षिण में एक हिंदू राज्य विजय नगर की स्थापना की।
तुर्कों ने केवल हिंदू शासकों पर ही विजय नहीं पाई बल्कि भारत में पहले से ही बसे मुसलमान शासकों पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित करके वार्षिक कर प्राप्त करने के लिए मजबूर किया। इसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि तुर्क आक्रमणकारी धार्मिक ना होकर राजनीतिक व धन से प्रेरित थे, धर्म तो केवल दिखावा मात्र ही था।