“सबको लड़की चाहिए, घर में नहीं, लेकिन बिस्तर पर” पुरुषत्व की वैचारिक जटिलताओं की पृष्ठभूमि और गरीब, बेबस व शराफत की बेड़ियों में बंधी महिलाओं के प्रति समाज के दोहरे दृष्टिकोण को, बहुचर्चित हरियाणवी हास्य कलाकार वी.एम. बेचैन ने उपन्यास “स्त्री एक ब्रह्मास्त्र” में बहुत ही संजीदगी के साथ जज्बातों का चित्रण किया है।
पुरुष समाज के झूठे अहम को नकारते हुए उन्होंने, आदम और हव्वा के समय से ही स्त्री में ब्रह्मास्त्र के छुपे होने के गहरे रहस्य को उजागर किया है। एक औरत को खुदमुख्तार और संचालिका के रूप में स्वीकार करना, लेखक के उच्च विचारों, परिवेश व संस्कारों का कथानक व्याख्यान है।
दुर्भाग्यवश यौन व विपसनाओं में लिप्त हर पुरुष के लिए, लेखक ने संभोग की समाधि से तुलना कर, सभी को जन्नत प्राप्ति का रास्ता दिखाया है। केवल पुरुष ही नहीं, महिलाओं को भी महिलाओं का दुश्मन करार कर , समाज के घिनौने रूप को उकेरा है।
गरीबी की मार झेल रही नान्ही व बीरमती की हृदय-विदारक घटनाओं को लेखक ने अपने लेखन कौशल से न्याय संगत किया है। महिलाओं की जिंदगी, संघर्ष और सपनों की ऊंची उड़ान से जुड़ी घटनाओं, भावनाओं व मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण भी किया है। लेखक ने प्यार के अनेक रूपों से भी पाठकों को रूबरू करवाया है। अपने लेखन में अंग्रेजी, हिंदीे व हरियाणवी शब्दों की रचनाधर्मिता को बखूबी निभाया है।
सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों के ह्रास को रोकने व महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच को जागृत करने का लेखक का यह अकल्पनीय प्रयास है। यह एक अत्यंत पठनशील उपन्यास है, जिसने समाज के हर वर्ग के पाठक के हृदय के गहरे में छुपी भावनाओं को झकझोरा है।