आप सभी ने कभी ना कभी जरूर देखा होगा कि एक मां अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने के बाद डकार दिलाने के लिए कंधे से लगाती है, ताकि उसे डकार आ सके। कभी-कभी तो बच्चा डकार के साथ थोड़ा सा दूध भी बाहर निकाल देता है। अगर उस दूध को ध्यान से देखा जाए तो दूध थोड़ा फटा हुआ नजर आता है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि चंद मिनटों पहले पीए गए दूध का कुछ ही मिनटों बाद फटे हुए दूध जैसा या दही में बदल जाना, यह कैसे हुआ। जी हां, हम बात कर रहे हैं, भोजन को पचाने के लिए, हमारे शरीर में रिसने वाले रसों की। एक संतुलित मात्रा में इन रसों का स्राव होना हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है। इन रसों के संतुलन को बनाए रखने में हमारा बहुत बड़ा हाथ है। थोड़ी सी सावधानी ही हमें बहुत बड़ी -बड़ी बीमारियों का सामना करने से बचा सकती है। बिल्कुल हम बात कर रहे हैं, आज की सबसे आम और गंभीर समस्या एसिडिटी की। जिसने ना केवल बड़े- बूढ़ों बल्कि बच्चों तक को भी अपने शिकंजे में जकड़ रखा है।
आजकल लोगों को देखकर ऐसा लगता है कि जाने क्यों, लोगों को उबला हुआ खाना-खाना या भोजन से मुंह फेर लेना तो लाजमी लगता है लेकिन खुद के लिए और भोजन करने के लिए 5 या 10 मिनट का समय निकालना किसी मुसीबत से कम नहीं लगता। भागदौड़ भरी जिंदगी और बदलती जीवनशैली ने जीवन के जिस आयाम को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह है, हमारा भोजन। किसी को सुबह उठने की जल्दी है, तो कोई देर रात तक अपने दफ्तर में कार्यरत है। आयुर्वेद के नियमानुसार भोजन करने का निर्धारित समय, हमारे लिए दूर की कौड़ी हो गया है। लेकिन अपने शरीर की क्षमता के अनुसार सही समय पर भोजन करना हमारे लिए अति आवश्यक है। इसको आप कुछ इस तरह समझ सकते हैं जैसे कुछ लोग अपना वजन घटाने के लिए भोजन कम मात्रा में लेना शुरू कर देते हैं या फिर कुछ लोग तो खाली पेट ही रहना शुरू कर देते हैं। जो कि सही नहीं है, क्योंकि भोजन के समय के अनुसार हमारे शरीर में रिसने वाले रस, अपने निर्धारित समय पर स्रावित होते हैं। इन रसों का कार्य हमारे शरीर में पहुंचने वाले भोजन को अच्छी तरह से पचाना है। जिस तरह एक मशीन अपना कार्य करती रहती है उसी तरह हमारे पेट में भी भोजन को पचाने के लिए रस अपना कार्य करते रहते हैं। लेकिन जब उसे कार्य करने के लिए कोई काम ही नहीं होगा, तो भी, रस लगातार निकलता रहेगा और वो रस अम्लीय है। जिससे हमारे शरीर में एसिड की मात्रा बहुत ही ज्यादा हो जाती है। धीरे-धीरे करके समय के अनुसार हमारे शरीर में एसिडिटी की समस्या रम जाती है। इसी को एसिडिटी कहते हैं।अगर समय रहते एसिडिटी की समस्या से निजात ना पाया जाए तो यह एक गंभीर रूप धारण कर लेती है।
भोजन हो या ना हो अम्लीय रस तो लगातार निकलता रहता है। अम्ल को आम भाषा में कहें तो तेजाब। जैसे तेजाब के किसी सतह पर गिरने से वह सतह एकदम खराब हो जाती है। वैसे ही एसिड यानी तेजाब हमारे पेट में खाने की थैली की ऊपरी सतह को क्षतिग्रस्त कर घाव बना देता है, जिसे अल्सर भी कहते हैं। आप स्वयं सोचिए अगर आपके शरीर की बाहरी त्वचा पर कोई घाव हो जाता है तो एक दवाई लेने के बाद भी ठीक होने में तकरीबन एक हफ्ता लग जाता है। यह हाल तो तब है जब यह चोट बाहरी है। लेकिन अगर हमें पेट की खाने की थैली में कोई घाव हो जाए तो आप अच्छे से समझ लीजिएगा कि यह दवाई लेने के बाद भी कम से कम डेढ़ महीने में ठीक होता है इसीलिए हमें एसिडिटी को रोकना बहुत ही जरूरी है।
इसके अलावा शरीर में होने वाले दर्द और जोड़ों के दर्द से बचने के लिए खाये जाने वाले पेन किलर्स या खून को पतला करने वाली दवाइयां भी पेट में एसिडिटी की मात्रा को बढ़ाते हैं।
एक तो जो लोग बहुत जल्दी -जल्दी काम करते हुए तनाव की स्थिति में रहते हैं उन लोगों में भी एसिड अत्यधिक मात्रा में रिलीज होता है यानी भागदौड़ भरी जिंदगी एक तरह से एसिड की मात्रा को शरीर में बढ़ाती है।
दूसरा जो लोग छोटी-छोटी बातों पर तुनक मिजाज रहते हैं और ज्यादा गुस्से में, तनाव में या ज्यादा चिंता करते हैं, उन लोगों में भी एसिड ज्यादा मात्रा में रिलीज होता है।
तीसरा ज़्यादा मिर्ची वाली चीजें, तीखी तली-भुनी चीजें,जंक फूड, बीड़ी, सिगरेट, शराब या मद्य पे पदार्थ जैसे तीन पत्ती वाली चाय, कॉफी, तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों में भी अधिक मात्रा में एसिड रिलीज होता है।
एसिडिटी के लक्षण: कुछ भी खाने के बाद खट्टी डकारें आना। मीठे के सेवन के बाद मुँह का कड़वा हो जाना, घी या तली भुनी चीजें खाने के बाद गंदी डकारें व मुँह का कसैला स्वाद हो जाना, नाभि के ऊपर के हिस्से में पेट में जलन, उल्टी जैसा महसूस होना या पेट में दर्द।
कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें खाना खाने के तुरंत बाद ही पेट में दर्द होना शुरू हो जाता है या अचानक रात को सोते हुए दर्द शुरू होगा। इसी डर की वजह से वह भोजन की मात्रा भी कम कर देते हैं। भोजन की मात्रा कम करना इसका इलाज नहीं है।
एसिडिटी से निजात पाने के लिए कुछ छोटे-छोटे उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर हमें इससे छुटकारा मिल सकता है।
जन्म के समय दादी मां द्वारा हरड़ की घुट्टी तकरीबन सभी बच्चों को पिलाई गई होगी, बस उसी हरड के रस की एक या दो छोटी चम्मच हर दिन खाना खाने के बाद लेने से एसिडिटी पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
कलेजे और पेट में होने वाली जलन से बचने के लिए, मुंह में हर घंटे में, गुड का एक छोटा सा टुकड़ा रखकर चूसते रहे। एक तो गुड में पाने वाला मैग्नीशियम हमारी आंतों की शक्ति को बढ़ाता है और दूसरी तरफ गुड का क्षारीय गुण एसिडिटी को कम कर पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। इससे ना केवल एसिडिटी खत्म होगी, बल्कि मिठाई खाने के बाद मुंह कड़वा रहने की शिकायत करने वाले लोगों को भी राहत मिलेगी।
विटामिन सी से भरपूर फलों का सेवन करें । हालांकि लोगों में यह भ्रांति है कि विटामिन सी से भरपूर फल अम्लीय होते हैं तो वह एसिडिटी को और भी बढ़ाते हैं लेकिन अगर आपको मौसमी या संतरा खाने के बाद पेट में कोई भी हलचल नहीं हो रही है तो आप यह फल खा सकते हैं। इसके अलावा सेब, नाशपाती जैसे फल भी एसिडिटी को कम करने में लाभदायक साबित होते हैं।
ठंडे दूध का सेवन करें।
एक प्लेट भरकर खीरे और तरबूज का सेवन भी फायदेमंद रहता है ।
ज्यादा तकलीफ होने पर एक ही दिन में चार से पांच बार नारियल का पानी जरुर पीये।
शकरकंदी यानी स्वीट पोटैटो भी बहुत ही फायदेमंद साबित होती है।अगर आपको फिर भी आराम नहीं मिल रहा है तो मार्केट में मिलने वाली एंटासिड जैसे डायजीन, जेलोसिल या मयूकेन जेल का प्रयोग करें।
लंबे समय से एसिडिटी की समस्या से ग्रसित व्यक्ति, कपालभाति और आलोम विलोम आसन के नियमित अभ्यास से बहुत ही कम समय में एसिडिटी से छुटकारा पा सकेंगे।
Views are on the basis of research.
Very simply and understandably explained many can be benefitted… Gud job …Keep writing!
Thank u pragya