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शौच की सोच: An Appeal to Every Citizen of India

Posted on February 12, 2021October 26, 2021 By Harish Kataria 1 Comment on शौच की सोच: An Appeal to Every Citizen of India
1,002 View

भारत बहुत ही सुंदर व मर्यादित देश है। भारत की संस्कृति विशाल और सभ्य है, लेकिन समय के अनुसार संस्कृति के मायने बदल गए है । आज संस्कृति का मतलब केवल धर्म की परंपराओं का निर्वहन करना रह गया है, लेकिन वास्तव में संस्कृति का अर्थ धर्म की परंपराओं का या रूढ़िवादिताओं का अन्य किसी भी प्रकार की मान्यताओं का निर्वहन करना नहीं है।

संस्कृति का अर्थ है सभ्य, सुसज्जित, सुनियोजित और सुव्यवस्थित सुंदर तरीके से जीवन जीना और जीवन जीने के लिए, दूसरों को प्रेरित करना, दूसरों के जीवन की इज्जत करना। संस्कृति मूर्ति के सामने बैठकर पूजा पाठ करने में नहीं है, संस्कृति गली चौराहे पर धर्म का प्रचार करने में नहीं है।

संस्कृति घरों में ,गलियों में, चौराहों पर जागरण करने में नहीं है, संस्कृति है सभ्य तरीके से जीने में और दूसरों को जीने लायक माहौल देने में। जिस संस्कृति में मर्यादा नहीं होगी वह संस्कृति अधिक दिनों तक नहीं फल-फूल सकती।

आज के समय में हम अपने अगल-बगल ,दाएं -बाएं बहुत -सी ऐसी चीज देखते हैं जो कि हमारी संस्कृति को बहुत पीछे लेकर जा रही है और कलंकित कर रही है।

आज एक शराबी ठेके से लेकर अपने घर तक अपशब्दों का प्रयोग करते हुए चलता है जहां देखो दो व्यक्ति मिले, वह किसी की भी परवाह न करते हुए, हर चीज को नजरअंदाज करते हुए अपनी अमर्यादित भाषा का व अपने फूहड़ शब्दों का‌ प्रयोग खुलेआम करते हैं।

आज का नौजवान अपनी मौज मस्ती को लेकर इतना आतुर है कि उसको अपनी सभ्यता का, अपनी मर्यादाओं का, दूसरों की सुविधा का बिल्कुल जरा भी ख्याल नहीं है आज की युवाओं को अक्सर शाम के समय विदेशी बियर का सेवन करने के बाद सड़कों पर गाड़ियों में, बाइकों पर हुड़दंग करते हुए आमतौर पर देखा गया है।

आम आवागमन के रास्तों पर लघुशंका व दीर्घ शंका का निपटान करने में आज किसी भी व्यक्ति को कोई गुरेज नहीं है। वह अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी जगह का प्रयोग करने में झिझकता नहीं है, भले ही उस रास्ते पर कितने लोगों का आवागमन चल रहा हो, वह अपनी शंकाओं का निदान अतिशीघ्र करने में विश्वास करता है।

क्या ऐसे लोग हमारी संस्कृति के संस्कृतिवाहक हैं? ये हमारी संस्कृति के कभी भी संस्कृतिवाहक नहीं थे और ना ही हो सकते हैं। आज कल हमारे घरों में संस्कारों का जिक्र ना होना ,नैतिक मूल्यों का प्रचार प्रसार ना होना हमारी संस्कृति को पंगु बना रहा है।

आज के समय में आप जब कभी भी शहर में या शहर से बाहर निकलते हैं तो लोग सड़क किनारे आपको लघुशंका (पेशाब‌) करते हुए दिखाई देंगे और वह ऐसा भी इस तरीके से और इस अंदाज में करते हैं जैसे वह एक ऐसी विरान सुनसान जगह खड़े हैं।

यह काम कोई दूसरा करे तो मुझे बुरा लगता है लेकिन कभी मैं करूं तो मैं कभी यह नहीं सोचता कि मेरे द्वारा किया गया काम भी किसी को बुरा लग रहा होगा, वह भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा होगा।

सड़क पर आप अपने परिवार के साथ कहीं जा रहे हैं और आपको सामने से इस तरह से शौच करते हुए व्यक्ति दिखाई देते हैं तो ,आपके मन पर आपके मस्तिष्क पर क्या गुजरता है । लेकिन जब हम अपने परिवार के साथ नहीं है यही काम करने से किसी को गुरेज नहीं होगा।

इसका मतलब क्या हुआ कि आज एक व्यक्ति विशेष नहीं आज हर व्यक्ति विशेष अपनी संस्कृति को अपनी मर्यादाओं को भूल चुका है ।

मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ें और इस विषय के बारे में समझे , इस विषय के बारे में सोचे और हर व्यक्ति हर दुसरे व्यक्ति को एक स्वच्छ माहौल में जीने का अधिकार दे अपनी संस्कृति को गिराए नहीं उठाए।

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Comment (1) on “शौच की सोच: An Appeal to Every Citizen of India”

  1. Ajender Sharma says:
    February 17, 2021 at 2:46 pm

    Good dear

Comments are closed.

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