जिस समय दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक ग्यारह सौ से ज्यादा हो गया था उस समय यूरोप के अधिकतर शहरों और अमेरिका के शहरों के अंदर वायु स्वच्छता सूचकांक 50 से भी कम था। यह एक गंभीर स्थिति है क्योंकि पीएम 2.5 अगर 50 से ज्यादा हो जाए तो वह हमेशा हानिकारक एक्शन श्रेणी में आता है लेकिन यह बड़े ही ताज्जुब की बात है कि नई दिल्ली में और आसपास के शहरों जैसे नोएडा गाजियाबाद में पीएम 2.5 1000 से भी ज्यादा क्रॉस हो गया है।
विभिन्न राजनीतिक दल एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कोई कह रहा है कि यह एक शहर की ट्रैफिक से संबंधित मिसमैनेजमेंट का परिणाम है तो कोई यह कह रहा है कि दूसरे राज्यों के द्वारा पराली जलाए जाने के कारण इस तरह की स्थिति पैदा हुई है। कुछ लोग दिवाली के अवसर पर अत्यधिक मात्रा में पटाखे चलाने को इस तरह के प्रदूषण का कारण मानते हैं।
वजह चाहे कोई भी हो लेकिन इसका परिणाम आम नागरिक को भुगतना पड़ता है क्योंकि असल में समस्या तो उसके ही साथ होती है। हम लोगों ने कभी भी राजनीतिक पार्टियों के सामने यह मुद्दा नहीं रखा कि एक आम नागरिक को पीने के लिए स्वच्छ पानी, सस्ती और उच्च स्तरीय चिकित्सा, और सांस लेने के लिए शुद्ध हवा की जरूरत है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब भी कोई देश विकसित होने के लिए कार्य कर रहा होता है तो उस देश के अंदर औद्योगिकरण अनिवार्य होता है और जहां पर भी नए कारखाने लगते हैं स्वाभाविक रूप से प्रदूषण भी होता है। लेकिन क्या विकास का पैमाना हमारे लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो सकता है?असल में जब तक सरकारी तंत्र प्रदूषण को दूर करने के लिए कार्य नहीं करेगा तब तक यह दिक्कत रहने वाली है। किसी भी सफल लोकतंत्र में केंद्र सरकार वही करती है जो लोगों की मुख्य मांग होती हैं। हमने राम मंदिर का मुद्दा बनाया और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए फैसला दिया। इस लड़ाई के अंदर सरकार का योगदान अहम रहा है। क्या कभी हम भारतीय नागरिकों को सरकार के समक्ष यह मुद्दा जोर-शोर से नहीं उठाना चाहिए कि हमारे आने वाली नस्ल को साफ हवा चाहिए?
आज दिनांक 12 नवंबर 2019 को प्रातः कालीन 9:00 बजे को आधार मानकर विभिन्न शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक देखने लायक है। जिस तरीके से वह शहर जहां पर किसी भी तरह का औद्योगिकरण नहीं है, दिल्ली, फरीदाबाद और गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों से भी वो शहर दूर है; उसके बावजूद भी उन शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरे के निशान से बहुत ऊपर है।
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर आप शहर में प्रदूषण को रोकने में असमर्थ हैं तो आप इस पोस्ट पर कैसे विराजमान है। दिल्ली सरकार यदि ट्रैफिक में odd-even का नियम लागू करती है तो विरोधी पार्टी के नेता उस नियम को तोड़ने के लिए तुरंत खड़े होकर के मीडिया के समक्ष बयान दे देते हैं।
अगर दोष किसानों पर डाला जाता है कि वह पराली क्यों जला रहे हैं तो उनके पक्ष में विभिन्न राजनीतिक नेता आ करके खड़े हो जाते हैं कि भूतकाल में भी तो पराली जलाई जाती थी तब इस तरह के प्रदूषण को लेकर हो हल्ला क्यों नहीं मचा?
इस आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक गतिविधियों के बीच में अगर कोई प्रभावित तो वह बच्चा जिसे बचपन में ही फेफड़ों के रोग आकर के घेर लेते हैं। हम लोग किसी विषय पर बहुत अच्छा बोल सकते हैं, बहुत अच्छा लिख सकते हैं और बहुत अच्छा सोच सकते हैं लेकिन जब वह विषय अपने ऊपर लागू करने की बात आती है तब हमको लगता है कि यह चीज हम पर नहीं किसी और पर ही लागू होनी चाहिए।
आप अपने विचार अवश्य दें।
The range of Air quality index during these days crossed the critical level. People should perform positive role for improving AQI so that environment could be save