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किसान आंदोलन: आसान भाषा में कुछ मार्मिक प्रश्न

Posted on December 5, 2020January 2, 2023 By Deepmala Solanki 4 Comments on किसान आंदोलन: आसान भाषा में कुछ मार्मिक प्रश्न
4,718 View

बीते कुछ महीनों में हम आदमखोर बन चुके होते, गर वो ना होता। चुन-चुन कर हम एक-दूसरे का मांस खाने के लिए विवश भी हो चुके होते, अगर वो ना होता।

अगर धरती उसके खून पसीने को, कमाई में ना बदले, तो हम सभी मार-काट, खून-खराबा और दरिंदगी को अपनी दिनचर्या बना लेते।

ऑनलाइन क्लासेज, वेबिनार, फेसबुक और ट्विटर पर होने वाली हर प्रकार की भाषणबाजी केवल एक धत्ता ही साबित होती।

जब पेट में न हो अन्न, तो किस काम में लगेगा मन।

जी हां, यहां किसान और हमारी धरती माता की बात हो रही है। जिनके बलबूते पर ही हम, भारत देश के,  भारत होने का परचम लहराते आ रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है ।

भारतीय संसद के द्वारा 27 सितंबर 2020 को, तीन कृषि बिलों को पास किया गया। राज्यसभा में यह बिल ध्वनि मत से पारित किए गए। वह बात अलग है कि सारा विपक्ष डिवीज़न ऑफ वोट की मांग पर अड़ा रहा, लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं मानी।

तीन बिलो के नाम

  1. The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act, 2020(FAPAFS)
  2. Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020(FPTC)
  3. Essential Commodities (Amendment) Act, 2020 (EC)

कुछ आवश्यक तथ्य

भारत की सत्तर प्रतिशत आबादी खेती पर ही निर्भर करती है, फिर भी हमारी प्राथमिकता में कृषि नहीं और ना ही किसान? भारत के किसान परिवारों के 86.2% यानि 126 मिलियन किसान ऐसे हैं जिनके पास दो हेक्टयर से भी कम की भूमि है। [Agriculture Census 2015-16]

क्या इतनी कम कमाई करने वाले किसान अतिरिक्त खर्चा वहन कर, अपनी फसल को दूर-दराज की मंडियों या दूसरे शहरों में ले जा कर बेच पायेंगें?

भारत देश में इस समय एपीएमसी की कुल सात हजार मंडियां हैं जहां अभी भी 42000 मंडियां बनाने की जरूरत है। क्या नये कानून से एपीएमसी मंडिया खत्म नही हो जायेंगी?

क्या कोई भी व्यापारी एपीएमसी मंडी के अंदर टैक्स देकर फसल खरीदना पसंद करेगा? व्यापारियों द्वारा मंडियों से बाहर फसल खरीदने पर क्या मंडियों की कोई महता रह जायेगी? क्या बिना एमएसपी के किसान अपनी फसल कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर नही होंगें?

उदाहरण से समझते है।

कृषि कानून लागू होने के बाद मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1760/- रुपया सरकार के द्वारा रखा गया। मक्के की खरीद जुलाई अगस्त 2020 महीने में शुरू हुई, और किसानो को मिला केवल 600/- से 900/- रुपया।

सरकार ने मक्के को नहीं ख़रीदा जबकि जिन्होंने ख़रीदा, उन्होंने दो गुना मुनाफा कमाया। क्या कमाया किसान ने ?

अगर एमएसपी व्यवस्था लागू नहीं की गई, तो क्या किसान अपनी उपज को कम दाम पर निजी व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर नहीं होंगे? अगर किसानों की फसलों को उचित दाम नही दिया गया तो दूरगामी परिदृश्यों में वो शहरों में पलायन के लिए मजबूर नही होंगें?

Essential Commodities (Amendment) Act, 2020 (EC) के मुताबिक गेहू, चावल, प्याज़, दलहन और आलू अब आवश्यक वस्तु की श्रेणी से बाहर हो जाएगी। क्या कोई इन गैर जरूरी चीज़ो की खरीद करेगा? अगर कोई किसान इन फसलों को उगाता है तो क्या उन्हें कभी भी उचित मूल्य मिल पायेगा?

यह भी जान लेना चाहिए की गैर जरूरी चीज़ो का वितरण जन वितरण प्रणाली के द्वारा भी नहीं किया जायेगा। इसकी संभावना प्रबल है।

ज़मीन के उपजाऊ होने के बावजूद भी, उचित दाम न मिलने पर, क्या किसान अपनी ज़मीन बेचने पर मजबूर नहीं होंगे? क्या कोई भी सरकार इस उपजाऊ ज़मीन की सार्थकता को सिद्ध करने में सक्षम होगी?

क्या सरकार इन सभी किसानों को इनके सामर्थ्य के अनुसार शहरों में नौकरी मुहैया करा पाएगी?

पी. साईनाथ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सन 2017 में लाई गई [Crop insurance scheme against natural disasters] किसानों के लिए फायदेमंद साबित नही हुई जिसके प्रबंधन का काम अनिल अंबानी की एक कंपनी को सौंपा गया था।

कुछ अध्ययन

एक अध्ययन के अनुसार, पिछले छह – सात दशकों से अमेरिका और यूरोप में कृषि के यही कानून चलते आ रहे हैं। आज वहां के 87 फीसदी किसान खेती छोड़ना चाहते हैं। अमेरिका के किसानों पर 425 अरब डॉलर का कर्ज है।

यूरोप के किसान भी खेती छोड़ने पर मजबूर हैं। हम इन विफल मॉडल को अपने देश में लाकर, अपने देश के जुझारू किसानों द्वारा नए कीर्तिमान स्थापित करवाकर ,या इन मॉडल को सफल करवा कर, किसे और क्या साबित करना चाहते हैं?

ये विकास का कौन सा पथ है जिसकी खाई में किसानों को धकेला जाना अनिवार्य है?

क्या हम सभी खेतों में कस्सी, खुरपा लेकर और हल जोतने के लिए तैयार हैं? हम सभी क्या खेतों में काम करने के लिए तैयार हैं? सभी अपनी फसल को क्या बे-मौसम बरसात और जंगली-जानवरों से बचाने के लिए तैयार हैं?

हम सभी क्या अपनी फसल को कीडों से बचाने के लिए और घड़ी-घड़ी फसल की पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी आरामदायक जिंदगी छोड़ने के लिए तैयार है? क्या हम सभी मानसिक, शारिरिक और आर्थिक क्षति सहने के लिए तैयार हैं? क्या हम मिट्टी में मिट्टी हो जाने को तैयार हैं?

सन 1995 से लेकर अब तक यानी पिछले 25 सालों में करीबन 3 लाख ज्यादा किसानों ने आत्महत्यायें की है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदा या आसमानी जुल्मों की मार और ऊपर से ये नई किसान नीतियों की मार। 

मार्मिक प्रश्न

भारत में अन्न को ब्रह्म का रूप माना गया है। देखा जाए तो अन्नदाता भी भगवान का ही एक रूप हुआ। तकरीबन 100 साल पहले चोरी हुई अन्नपूर्णा की मूर्ति को हाल ही में भारत वापिस लाया गया है लेकिन अन्न पैदा करने वालों के प्रति हमारी संवेदनशीलता ना के बराबर नज़र आ रही है। 

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Comments (4) on “किसान आंदोलन: आसान भाषा में कुछ मार्मिक प्रश्न”

  1. Pragya Sharma says:
    December 6, 2020 at 7:13 am

    Behad jaroori sawaal uthaye gaye hain ….. is per chintan ki Gahan aavshakta  Hai

  2. Vicky sangwan says:
    December 5, 2020 at 6:03 pm

    True.
    I agree with you .
    This is irony of India that people even don’t know to whom they should give respect.  We are with our farmers. 

  3. Ajender Sharma says:
    December 5, 2020 at 11:10 am

    Nice thoughts

    1. jitender Kumar says:
      December 6, 2020 at 2:42 am

      Deep & right Observation

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