भारत
भारत एक अति सुंदर विभिन्नताओ से भरा देश है। विभिन्नता इस के नाम से ही शुरू हो जाती है। भारत के नाम – भारत, हिंदुस्तान, इंडिया, यंगिस्तान, सिंध देश, हिंदू देश, आर्य और भी अनेकों नाम इतिहास में इस देश के लिए लिए गए हैं।
इसी प्रकार इस भारत देश में प्राकृतिक विविधता भी बहुत है। कहीं बर्फ से ढकी चोटियां कहीं, लहलाते घास के मैदान, कहीं जल से भरी हुई नदिया, कहीं सूखे मैदान, कहीं पथरीली जमीन। अनेक प्रकार की प्राकृतिक संपदा से भरा है भारत देश।
उसी प्रकार राजनीतिक व सामाजिक ढांचा विभिन्नताओं से भरा है। कदम कदम पर अलग-अलग तरह की रीति-रिवाजों को, मान मर्यादाओं को मानने वाले लोग, परंपराओं को निभाने वाले लोग है।
भयावह विभिन्नता
हर प्रदेश, क्षेत्र विशेष की अपनी राजनीतिक व सामाजिक पहचान है और उनके मन में अपने परंपराओं अपने रीति-रिवाजों को लेकर, एक दूसरे से श्रेष्ठ होने का भाव देश को और भी ज्यादा निकृष्ट व भयावह विभिन्नताओं से भर देता है।
लेकिन आप पूरे देश में घूमे पूरे देश में लोगों से मिले। आपको जम्मू कश्मीर में कश्मीरी मिलेंगे, हिमाचल में हिमाचल के लोग मिलेंगे, पंजाब में पंजाबी मिलेंगे, हरियाणा में हरियाणवी संस्कृति को साथ लेकर जीने वाले हरियाणवी लोग मिलेंगे, राजस्थान में राजस्थानी मिलेंगे, गुजरात में गुजराती, मध्यप्रदेश में मेहनतकश किसान मिलेंगे, मुंबई महाराष्ट्र में आपको मराठी मिलेंगे, तमिलनाडु में तमिल मिलेंगे, पश्चिम बंगाल में बंगाली मिलेंगे।
भारत ने इसे अभी नहीं जाना है, अब तक नहीं पहचाना है जबकि पड़ोसी देशों के साथ साथ पूरे विश्व ने इस कमजोरी को बखूबी समझ लिया है, पहचान लिया है और उसका लगातार लगातार फायदा उठाते चले जा रहे हैं।
आज भी किसी भी पंजाबी को, किसी भी हरियाणवी को, किसी भी गुजराती को, किसी भी मराठे को, किसी यूपी, बिहार के व्यक्ति के मन में यह नहीं आया कि मुझे अपने देश को बचाना है सब के मन में एक में एक ही बात मुझे केवल अपना घर बचाना है।
अगर उस व्यक्ति से पूछा जाए कि आपका घर कहां है तो यह नहीं कहेगा कि उसका घर भारत में है वह यही कहेगा कि उसका घर तो फला जगह पर है । अब भारत को बचाने के लिए, भारतीय अखंडता को बनाए रखने के लिए, भारतीय संप्रभुता को बनाए रखने के लिए क्या कोई नए किस्म के लोग किसी आसमानी ताकत से पैदा किये जाएंगे
मैं नहीं कहूंगा कि मेरे पास समाधान है लेकिन एक सुझाव है इस समस्या से निपटने के लिए हमें भारत के ढांचे में एक आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
वैसे तो कागजों में फाइलों में सरकारी दस्तावेजों में राष्ट्रपति बहुत बड़ा नाम है, बहुत बड़ी शक्ति है। पूरा देश उसके अधीन है कार्य कर रहा है, हर गरीब उसकी नजर में है, हर कार्य में हस्तक्षेप कर सकता है।
परंतु क्या कागज से बाहर सरकारी फाइलों से बाहर क्या वह कुछ कर सकता है? जब राष्ट्रपति ही कुछ नहीं कर सकता है तो उसके द्वारा बनाए गए राज्यपाल, उपराज्यपाल किसी भी रुप से भारत के ढांचे में आज फिट नहीं बैठते हैं?
सुझाव
भारत में राजनीतिक सोच और राजनीतिक समझ की बड़ी आवश्यकता है। आज राजनीतिक क्षेत्र में जो भी व्यक्ति आ रहा है या जो भी व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र में मौजूद है, उसके पास लग्न है – केवल अपने कार्य के लिए, केवल अपने स्वार्थ हितों को साधने के लिए।
उसे चाहिए कि वह अपने स्वार्थों को छोड़कर ,रंजिश भरी ओछी सोच की राजनीति को छोड़कर, एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति को छोड़कर, अपने क्षेत्र विशेष की राजनीति को छोड़कर, अपनी जाति विशेष की राजनीति को छोड़कर भारत देश की राजनीति करें।
जो करे उस पर अडिग रहे ऐसा ना हो कि सपने दिखाए और आंखों में ही मसल दिए जाए। किसी भी देश की विकास में सबसे अधिक योगदान है शिक्षा और चरित्र का।
आज भारत देश में शिक्षा क्या है? शिक्षा के क्षेत्र में जो भी निर्देशों का निर्धारण करते हैं उन लोगों की केवल आज इतनी ही सोच है कि पढ़ेगा इंडिया तो प्रश्न पूछेगा इंडिया।
अगर भारत देश की अखंडता और संप्रभुता को बचाए रखना है और उसको एक विकसित देश बनाना है तो राजनीतिक ढांचे में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। उसके साथ-साथ शिक्षा को वास्तविक शिक्षा का रूप देकर हर नागरिक को, हर व्यक्ति विशेष को पहले देश का नागरिक बनाना है।
उसके मन में यह विचार जगाना है कि वह भारत देश का नागरिक है न कि वह गुजरात से है, न कि वह हरियाणा से, न हीं राजस्थान से है। कहीं भी, कहीं कुछ भी बात रहती है तो उसके दिमाग में, उसके मन में, दिल में एक ही आवाज हो कि वह सबसे पहले एक जिम्मेदार भारतीय है। उसके बाद हम सोच सकते हैं कि वह देश हित में क्या करेगा।
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