नई मुस्लिम सल्तनत हिंदू सरदारों को कुचलने के बाद यायावर, विदेशी, निर्दयी तुर्कों से अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही थी। क्योंकि इसने तो अभी चलना ही सीखा था। इसने ना तो हिंदू धर्म को समाप्त करने की कोशिश की और ना ही उनकी संस्कृति व सभ्यता मिटाने का प्रयास किया। इसने तो केवल हिंदुओं की व्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था को कुचलने का प्रयास किया तथा सफलता पायी।
इस कारनामे को अमली जामा पहनाने के लिए इस नवयुवक सल्तनत ने धर्म का सहारा लिया और जिहाद का नारा देकर अपना उद्देश्य पूरा किया। जब यह जवान हुई तो इसने इस देश की बहुसंख्यक हिंदू जनता को उदारता पूर्वक अपने अंदर आत्मसात कर लिया। इसके उदाहरण हैं – अलाउद्दीन खिलजी वह मोहम्मद बिन तुगलक।
हमारी संस्कृति व सभ्यता का विकास यूं ही नहीं हुआ। इसे वर्तमान स्थिति प्राप्त करने में कई सदियां गुजर गई। सामाजिक विरासत में समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है। परंतु पुरानी व्यवस्था पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होती। यह इतनी प्रबल हो जाती है कि कोई व्यक्ति जब इसे नष्ट करने की कोशिश करता है तो वह उस नष्ट करने वाले व्यक्ति, समाज या समुदाय पर कड़ा प्रहार करती है और उसका अस्तित्व ही समाप्त कर देती है।
संस्कृति एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें हमारे रीति रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, हमारी आस्था, हमारे मूल्य व आदर्श, हमारे धार्मिक कार्य आदि शामिल होते हैं। जिनको मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के नाते स्वीकार करता है। मनुष्य का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, लेकिन अपनी संस्कृति को मनुष्य छोड़ नहीं पाता है।
इन सब बातों का जिक्र मैंने इसलिए किया कि जब-जब हिंदू शासकों पर अपना अस्तित्व खोने की समस्या आई तब तब उनके धर्म व संस्कृति ने उनको ताकत प्रदान की तथा उनके अस्तित्व को बचाए रखा। इसलिए हिंदू व्यवस्था इस्लामी दबाव, यातनाएं एवं क्रूरता झेलने में सक्षम रही।
मानव, प्रकृति का रहस्य न पाकर, यह समझ बैठा कि इस दृश्य संसार में इस दृश्य संसार से परे कोई ऐसी सर्वोच्च शक्ति है जिसके कारण संसार का संचालन हो रहा है। इस शक्ति को खुश रखने के लिए मानव इसके सामने नतमस्तक होकर पूजा पाठ, इबादत आदि करता हैं।
यह अदृश्य शक्ति सही अर्थों में एक मृग मरीचिका के समान है। जिसको आज तक कोई खोज नहीं पाया। इस अदृश्य शक्ति को ही धर्म का नाम दिया गया। इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है।
- हम से परे कोई ऐसी सर्वोच्च शक्ति है जिसके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि यह मानव की क्रियाओं को नियंत्रित एवं निर्देशित करती है। इस परिभाषा से मनुष्य का धार्मिक दृष्टिकोण परिलक्षित होता है।
- उस सर्वोच्च शक्ति को तंत्र मंत्र द्वारा वश में करना।
- कार्य-कारण के नियम से संसार का चलना। यह सिद्धांत महात्मा बुद्ध ने दिया था। इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण झलकता है।
प्रथम व दूसरी मान्यता ने धीरे-धीरे संस्कृति का रूप धारण किया। क्योंकि जब हमारे संस्कार परिपक्व हो जाते हैं, तब यह संस्कृति का रूप धारण कर लेते हैं जो जीवन भर नहीं छुट पाते।
महमूद गजनवी
- महमूद गजनवी के आक्रमण धन प्राप्ति के उद्देश्य से थे। उसने मंदिर लुटे, ग्रामीण जनता को मौत का भय दिखाया लेकिन धर्म परिवर्तन का भय नहीं दिखाया। उसका उद्देश्य भारत में रहकर इस्लाम फैलाना नहीं था। वह तो भारतीयों से गजनी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना चाहता था।
- वह तूफान की तरह आता और धन लूट कर चला जाता। इसने कभी भी भारतीय संस्कृति से छेड़छाड़ नहीं की। मंदिरों के अतिरिक्त धन कहीं और होता तो वह मंदिरों पर आक्रमण नहीं करता। यह बात स्पष्ट है कि वह धर्म के प्रभाव में नहीं था। उसने अपना धन संबंधी उद्देश्य पूरा करने के लिए केवल धर्म का सहारा लिया और तत्कालीन अनपढ़ इस्लामिक जनता ने उसका साथ दिया।
- उसने न तो दिल्ली पर राज करने की इच्छा की और ना ही कभी भारतीय हिंदू संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की। उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसके आक्रमणों का उद्देश्य केवल धन प्राप्त करना था ना कि भारतीयों को मुसलमान बनाना। वह इस बात से भलीभांति परिचित था कि वह बहुसंख्यक हिंदुओं को मुसलमान नहीं बना सकता।
- बात 1000 ईसवी की है जब हिंदू राजा जयपाल तथा महमूद के बीच हिंद के पठार पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में जयपाल पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। लेकिन ढाई लाख दीनारों के बदले उसे आजाद कर दिया गया।
- महमूद ने जयपाल को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया।
मोहम्मद गौरी तथा कुतुबुद्दीन ऐबक
- मोहम्मद गौरी को 1175 में अन्हिलवाड़ा गुजरात के शासक भीम द्वितीय से तथा 1191 में अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अगले ही वर्ष 1192 में उसने चौहान शासक को हराया तथा कुतुबुद्दीन ऐबक को पराजित प्रदेशों का शासक बना कर वह गजनी लौट गया।
- उसने न तो कोई उपाधि धारण की तथा ना ही अपने नाम के सिक्के चलाएं।
- हिंदू सरदारों का पतन: ऐबक ने उन सभी हिंदू सरदारों का पतन किया जो उसकी अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। हिंदू सरदारों ने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर, उसे निश्चित भाग में राज्य कर, जजिया कर देना स्वीकार किया।
- ऐबक ने उनको भूमि का स्वामी रहने दिया। इसके अतिरिक्त उसने हिंदू सरदारों को आतंकित करने के लिए उनके मंदिरों को तोड़ा तथा लूटपाट की। ऐबक की इस भावना में इस्लामीकरण की छाया तक दिखाई नहीं दी। वह हिंदू सरदारों तक सीमित रहा और अगर मंदिर तोड़े भी तो धन प्राप्ति के लिए तथा हिंदुओं को डराने के लिए ताकि वह इस्लामिक राज्य को सुरक्षित बनाए रखें।
- उस का इस्लामीकरण की तरफ कभी ध्यान नहीं गया। वह इस बात को अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने हिंदुओं को मुसलमान बनाने की कोशिश की तो सिवाय अराजकता के उसे कुछ भी नहीं मिलेगा तथा उसका राज्य खतरे में पड़ जाएगा।
- उसने हिंदू सरदारों को राजस्व व जजिया कर स्वीकार करने के बाद उनको भूमि का स्वामी ही रहने दिया। उनके ऊपर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव नहीं डाला। उसको पता था कि भारतीय संस्कृति को बदलना इतना आसान काम नहीं था।
- अगर वह हिंदू संस्कृति को बदलने की कोशिश करता तो बहुत बड़ा बवाल खड़ा हो जाता। उन्होंने तो केवल हिंदू सरदारों को हराकर उनसे धन वसूल किया। उन्होंने धर्म का भय दिखाया लेकिन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया।
मामलुक वंश या गुलाम वंश
- ऐबक 1206 से 1210 तक अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए अपने समकालीन शत्रुओं से संघर्ष करता रहा।
- उसने युद्ध किए तो केवल अपनी राजनीतिक सत्ता बनाए रखने की भूख के कारण। उसने केवल दिखावा मात्र धर्म का सहारा लिया।
- धर्म के नाम पर उसने अपनी सत्ता को बनाए रखा। समकालीन हिंदू सरदारों को पराजित कर अपने सैनिक प्रबंध को बनाए रखने के लिए उसने नजराना तथा कर वसूल किया।
- उसे हिंदू जनता से धर्म के संदर्भ में कोई लेना-देना नहीं था। ऐबक की मृत्यु के बाद आराम शाह ने सत्ता संभाली। आराम शाह एक निर्बल शासक था। उसने केवल एक वर्ष शासन किया।
- उसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद इल्तुत्मिश 1211 से 1236 गद्दी पर बैठा।
जलालुद्दीन खिलजी तथा अलाउद्दीन खिलजी
- जलालुद्दीन खिलजी ने यहां तक कहा कि “हिंदू लोग मेरे महल के नीचे से खड़ताल व तूरही बजाकर रोजाना यमुना नदी जाकर मूर्ति पूजा करते हैं और हम विवश होकर चुपचाप देखते रहते हैं।”
- अलाउद्दीन खिलजी ताकतवर व महान शासक हुआ। वह बहुत महत्वाकांक्षी शासक था। वह विश्व विजय के स्वपन देख रहा था। इस कमी को पूरा करने के लिए उसे धन की आवश्यकता हुई।
- उसने हर कार्य को धर्म से ऊपर उठकर किया। 1307 में अलाउद्दीन ने देवगिरी पर आक्रमण किया। देवगिरी का राजा रामचंद्र पराजित हुआ। मलिक काफूर को इस युद्ध में अथाह धन प्राप्त हुआ।
- रामचंद्र को पकड़कर दिल्ली लाया गया। लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें अपना मित्र तथा राय रायान की उपाधि दी। राजा रामचंद्र को दोबारा देवगिरी का शासक नियुक्त किया।
- इससे यह सिद्ध होता है कि अलाउद्दीन को धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। वह तो अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए धन प्राप्त करना चाहता था।
इस लेख को पढ़कर इस बात का तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि तकरीबन 800 साल के मुस्लिम साम्राज्य के बाद भी हमारे देश में तथाकथित हिंदू आज भी बहुसंख्यक हैं।
ऐसा होने के दो ही कारण हो सकते हैं।
1. मुस्लिम आक्रांताओ और सुल्तानों ने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म के साथ कोई छेड़खानी नहीं की।
2. मुस्लिम आक्रांता और सुल्तानों ने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म को बदलने की कोशिश की परंतु कामयाब नहीं हो सके।
दोनो ही स्थितियों से यह स्पष्ट है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू ही रहे। अगर उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं तो आज की भारतीय राजनीति में हिंदू को मुसलमान से खतरा है या मुसलमान को हिंदू से खतरा है, इस तरह की हिंदू मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का क्या अर्थ है।
यह मेरी समझ से परे है।
एक इतिहासकार की दृष्टि से इस विषय पर लिखा गया यह लेख पढ़ना वाकई में दिलचस्प है।
Nice dear… इसके बाद रजिया बेगम एकमात्र महिला मुस्लिम शासक हुई 1236 से 1240 .??… मुगल वंश पर भी लिखिए …श्रीमान जयबीर जी… कैसे औरंगजेब ने नरसंहार करवाया और मुगल साम्राज्य का विस्तार किया???