भारत एक गणतंत्र राज्य है। गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ है- लोगों का तंत्र। संविधान में हर व्यक्ति को बोलने का, अपने विचार ,हर विषय पर व हर मंच पर रखने का अधिकार दिया है । अगर हम थोड़ा अपना नजरिया बदलकर देखें तो, बोलने का अधिकार हमें संविधान ने ही नहीं दिया यह अधिकार तो हमें व पृथ्वी के हर प्राणी को इस प्रकृति ने दिया है।
हमारे संविधान ने तो प्रकृति के बनाए नियम को प्रेषित किया है । हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का, अपने मन में उठे प्रश्न पूछने का , अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है । वह यह विचार, अपनी बात, अपने प्रश्न स्वतंत्र रूप से पूछ सकता है । मानव एक चिंतनशील प्राणी है । अगर चिंतन करना छोड़ देगा तो मानसिक रूप से किसी ना किसी मानसिक रोग , तनाव या अवसाद से ग्रस्त हो जाएगा।
इसी चिंतनशील स्वभाव के कारण अपने आसपास की घटनाओं व परिघटनाओं को देखकर उसके मन में अनेकों विचार व अनेकों प्रश्न उठते हैं । और वह अपने प्रश्न पूछेगा तंत्र से जिसे हम सरकार कहते हैं। भारत में सरकार किसी व्यक्ति, समुदाय , समाज या किसी दल विशेष की सरकार नहीं होती अपितु यह सरकार पूरे भारत की है , हर उस व्यक्ति की होती है जो भारत का नागरिक है, जो भारत के प्रति प्रेम व गहरी संवेदना रखते हैं।
परंतु आज के समय में यह तंत्र कुछ बिगड़ता नजर आ रहा है । आज तंत्र से प्रश्न पूछना, तंत्र की समालोचनात्मक व आलोचनात्मक टिप्पणी किसी भी तरह से सही नहीं मानी जाती । एक ऐसी भीड़ तैयार हो गई है जो हर उस आवाज को गलत मानते हैं जो तंत्र से प्रश्न पूछती है व एक कदम और आगे बढ़ कर इस आवाज को देशद्रोही या देश का अपमान मानने लगी है।
यह भीड़ हर उस आवाज को हमेशा के लिए दफन कर देना चाहती है जो तंत्र के बारे में अपने विचार रखती है या तंत्र से प्रश्न पूछती है । कक्षा में अध्यापक पढ़ाते हैं, बच्चे सुनते हैं, पढ़ते हैं, सीखते हैं लेकिन वह बच्चे ज्यादा सीखते हैं जो अपने अध्यापक के सामने अपनी समस्या या अपनी बात रखते हैं । ऐसी भीड़ जो तंत्र की समीक्षा करे बगैर ही , लोकतंत्र व गणतंत्र को जाने बगैर ही , गणतंत्र व लोकतंत्र की आत्मा को दफन करना चाहते हैं।
मैं उनसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि-आप अपने विचारों पर कब जीओगे ? अपने अनुसार कब सोचोगे ? आप एक भीड़ बनकर कब तक भारत देश की शान को मिटाते रहोगे ? किसी वर्ग ,समुदाय ,धर्म, जाति या दल के कार्यकर्ता होने से पहले हम इंसान हैं । हर इंसान को इंसान व इंसानियत के लिए ही जीना चाहिए। कैसे हम किसी की चीख-पुकार सुनकर निस्तब्ध खड़े रह सकते हैं? कैसे किसी की भूख-प्यास, गरीबी व बेबसी देख कर हम उसके सामने ही अपना वैभव प्रकट करने लगते हैं?
कैसे हम किसी को मरता देख वहां से मुंह फेर कर जा सकते हैं? आज सोचने का व कुछ कर गुजरने का दौर है। इंसान को उसके इंसान होने का एहसास दिलाना बहुत जरूरी हो गया है। अपने निजी जीवन की आपाधापी व भागम भाग में हमारे स्वार्थों ने हमारे नैतिक मूल्यों के ऊपर एक बुराई की परत चढ़ा दी है , आज उस परत को अपने अंदर की अच्छाई की चमक से मिटा देना है और संसार को बता देना है कि यह वही भारत है जो पूरे विश्व को वसुदेव कुटुंबकम मानता है और उसके हितों के बारे में सोचता है ।
क्या आप इस सोच में अपनी आहूति नहीं डालेंगे ? क्या आप इंसान को इंसान बनने का मौका नहीं देंगे ? क्या आप अपने आप को एक इंसान नहीं कहलवाना चाहते? सोचिएगा जरूर!!
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लगे रहो मुन्ना भाई