अमलतास के पेड़ पर, अप्रैल के इन गर्म दिनों में अचानक से एक पक्षी की आवाज सुनाई दी जिसे यहां की स्थानीय भाषा में काबर बोला जाता है। कई वर्षों से खामोश काबर की आवाज आज की पीढ़ी को तो शायद पता भी नहीं है। अचानक से घरों के अंदर चिड़िया ने अपना बसेरा खोजना शुरू कर दिया है, जो चिड़िया हमें नजर ही आनी बंद हो गई थी उसका विश्वास मनुष्य पर दोबारा से लौटने लगा है।
शहर की सड़कों पर अचानक से नीलगाय एवं हिरन लौट आए हैं शायद उन्हें लगा है कि यह शहर जहां उनकी जान के दुश्मन लोग रहते हैं अचानक से उनके प्रति इतने मेहरबान क्यों हो गए? आज उन्हें भी सारी दुनिया अपनी सी लगने लग गई है।
बर्फ से सराबोर धौलाधार के बड़े बड़े पर्वत अचानक से जालंधर के लोगों को नजर आने लग गए। शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित धौलाधार के पर्वतों का नजारा जब जालंधर के लोगों ने अपनी आंखों से देखा तो उन्हें अपनी आंखों पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ ।
अरबों रुपए और अलग-अलग योजनाओं के बावजूद जो गंगा एवं यमुना नदी साफ नहीं हो पाई, अचानक से उनका जल निर्मल और स्वच्छ सा नजर आने लग गया है। भारतीय वन विभाग द्वारा बीते दिनों हिम तेंदुए को देखा गया जो नजर आना ही बंद हो गया था। यह प्रकृति के अंदर आए हुए अचानक बदलाव का नतीजा माना जा रहा है।
बड़े-बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक हमेशा खतरनाक के स्तर पर रहता है। अचानक से उन बड़े-बड़े शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक अच्छा हो गया है। जिसकी वजह से आसमान का रंग नीला नजर आने लग गया हैं। बड़े शहरों में पलते बच्चों ने शायद किताबों में पढ़ा था कि तारे टिमटिमाते हैं लेकिन अब उनको वह नजारा अपनी आंखों से दिखाई भी दे रहा है।
अगर वायुमंडल विशेषज्ञों की मानें तो कई सालों से जस की तस ओजोन परत ने भी अपने अंदर सुधार करना शुरू कर दिया है। यह कहना तर्क हीन और अवैज्ञानिक लगता है – परंतु सत्य भी लगता है। यह महामारी प्रकृति के क्षोभ, विषाद और मनुष्य के प्रति अपनी नाराजगी से पैदा हुई लगती है। इस महामारी के माध्यम से प्रकृति ने मनुष्य को अपनी ताकत का अहसास कराने का कार्य भी किया है।
“मनुष्य अपनी दृढ़ निश्चय, कुशलता और वैज्ञानिकता से देर सबेर इस महामारी को जीत लेगा लेकिन उसके पश्चात हमारा दृष्टिकोण प्रकृति के प्रति क्या होगा यह सोचने का विषय है?”
अगर आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो जितने लोग इस महामारी के प्रकोप से दुर्भाग्यवश मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उससे 10 गुना लोग तो प्रतिदिन इस देश में सड़क हादसों के कारण मर जाते थे। समस्त विश्व में जितने लोग इस महामारी से ग्रसित हैं उससे ज्यादा लोग तो प्रतिवर्ष विश्व में तपेदिक से मर जाते हैं।
लेकिन इस महामारी के संक्रमण को देखते हुए समस्त विश्व बंद है। अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है। सभी लोग अपने घरों के अंदर बैठे हैं और इस समय का प्रयोग वह यह विचार करने के लिए कर सकते हैं कि –
जब यह लोकडाउन खत्म होगा तब हमारा नजरिया इस प्रकृति के प्रति क्या होगा?
- क्या फिर से हिम तेंदुए, काबर, चिड़िया और असंख्य पक्षी गुमनामी के अंधेरे में खो जायेंगे?
- क्या सभी जानवर फिर से यह मान बैठेंगे कि वह इस पृथ्वी पर दोयम दर्जे के जीव हैं?
- क्या फिर से जीवंत होती नदियां जिन्हें भारतवर्ष में माता के रूप में पूजा जाता है फिर से मानवीय मैल और प्रदूषण का शिकार हो जाएंगी?
- क्या फिर से बच्चों के सामने नीला आकाश और टिमटिमाते हुए तारे एक किताब के तथ्य मात्र रह जाएगे?
- क्या फिर से धौलाधार के हिम से लदे पर्वत लोगों की निगाह से ओझल हो जाएगे?
बड़े-बड़े शहरों में रहने वाले बच्चे जिन्हें अपने भोजन के साथ धूल और धुआं भी खाने की आदत है, उनके फेफड़े तो बचपन में ही जवाब दे जाते हैं। ऐसे में सांस लेने की तकलीफ को पैदा करने वाली इस महामारी के प्रकोप से वह कैसे बच पाएंगे – यह समझा जा सकता है?
मनुष्य का शरीर भी पांच तत्वों से मिलकर के बना है, और अगर यह सभी तत्व भी प्रदूषित हो तो व्यक्ति के अंदर प्रतिरोधक क्षमता कैसे विकसित होगी? आंकड़े कहते हैं कि जो लोग इस महामारी के प्रकोप से काल का ग्रास बन रहे हैं वह लोग या तो बड़े उम्र के व्यक्ति हैं या वह व्यक्ति हैं जिन्हें सांस से संबंधित कोई बीमारी है।
आज बड़े शहरों में पैदा होने वाला हर बच्चा अपने जीवन के पहले ही वर्ष में नेबुलाइजर से सांस लेने का आदी हो जाता है तो हमे यह सोचना होगा कि आने वाले समय में अगर इस तरह की घटनाएं फिर से घटती है तो वह अपने जीवन को कैसे बचा पाएंगे? जिन क्षेत्रों के रहने वाले लोगों में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है या जहां पर वायुमंडल के अंदर प्रदूषण कम है वहां पर इस बीमारी का प्रकोप बहुत ज्यादा कम देखने को मिल रहा है।
हमें पृथ्वी को फिर से हरा-भरा करना ही होगा। हर बड़े महानगर की परिधि के चारों तरफ तकरीबन 4 किलोमीटर चौड़ा एक वन क्षेत्र, प्रतिबंधित क्षेत्र के रूप में हमें विकसित करना ही होगा ताकि शहर के अंदर उपजा हुआ प्रदूषण इन वन क्षेत्रों की वजह से काबू में किया जा सके। इसके साथ-साथ नदियों के मुहाने पर भी वन क्षेत्र, प्रतिबंधित क्षेत्र के रूप में हमें विकसित करना ही होगा ताकि नदियों में होता हुआ प्रदूषण बचाया जा सके।
“हिंदू वेद पुराणों में यह कथन है कि गंगा स्वर्ग से उतरकर जब पृथ्वी पर आई तो शिव ने उसके तेज प्रवाह को रोकने के लिए उसे अपने केशों में समाहित कर लिया था इसलिए गंगा भारत के लोगों के लिए बहुत ही ज्यादा पवित्र है इसलिए यह समझना बहुत मुश्किल है कि गंगोत्री जो गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है वहां पर लोगों ने गंदे नाले इस नदी के अंदर छोड़ रखे हैं।”
सोनी बीबीसी अर्थ पर प्रसारित होने वाले एक डॉक्यूमेंट्री में उपरोक्त शब्द एक विदेशी उद्घोषक से यह सुनकर वाकई में बहुत बुरा लगा।
हमें हमारी प्रकृति को बचाना होगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हो इस तरह की महामारी हजारों लोगों की जिंदगियां ना लील जाए इसलिए हमें प्रकृति को अपने से सर्वोपरि मानते हुए उसके लिए कार्य करना होगा।यह एक आंदोलन बनाना होगा ताकि हमारे आने वाली नस्ल भी शुद्ध हवा और पानी का आनंद ले सकें।
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